
Saarthi (Krishna's Version) Lyrics
- Genre:Hip Hop & Rap
- Year of Release:2024
Lyrics
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
महाभारत का कारक मैं
धर्मयुद्ध की नियति हूँ
द्वापर में मैं देव नहीं
समस्त युग का सारथी हूँ!!!
विश्वरूप में प्रेरक मैं
वचनबद्ध भी घातक हूँ
सुदर्शनधारी श्रापित मैं
एक बाण से आहत हूँ...
(एक बाण से आहत हूँ...)
(एक बाण से आहत हूँ...)
प्रतिस्पर्धा सामर्थ्य की पहचान नहीं
व्यक्तिगत प्रण का कोई मान नहीं
गुरु-शिष्य का भेद महीन है
जो मोह में, वो प्रेमविहीन है।
प्रजा परिवार से प्यारी हो
आडंबर चूर्ण, वेदवाणी हो
भरत-राज्य हुआ संभव तभी
अधर्मियों के रक्त से जब पटी मही।
दर्प नष्ट हो कर दिया, समृद्धि का उदयभान
वाष्प कर दिया कंस, इंद्र समेत कौरवों का अभिमान।
था युग का घटनाचक्र मेरे रथ का मार्ग
आत्मा का उत्थान था मेरा ज्ञान-पराग!!
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय
सिद्धयसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते
सूर्यनारायण का अंश अधर्म के पक्ष में खड़ा
कर्ण को आत्मबोध हो, था प्रयत्नशील मैं सदा
राधेय का अंत अहो किन्तु दुखदायी बड़ा
करता मुझसे स्नेह, कहता मेरा अनुयायी था।
पितामह स्वयं को मेरा भक्त कहें
अद्वितीय महारथी किन्तु आशक्त रहे।
द्रोण शाश्वत ज्ञान से विमुख बड़े
पुत्र को राज्य गुरु का प्रमुख उद्देश्य!
तीनों महारथी जिस भी पक्ष में खड़े
क्षण में बने वो ब्रह्मांड-विजय।
व्यक्तिगत धर्म को जो इष्ट कहें,
जो मेरे गमन मार्ग में विघ्न बने
मृत्युदान, महाकाल का अभीष्ट,
धर्म का सार सदैव अटल रहे।
धर्म व्यक्तिगत नहीं
धर्म है सार्वभौम!!
धर्म विचारगत नहीं
धर्म है वस्तुनिष्ठ!!
रूढ़िवाद, परिवारवाद, षड्यंत्र से भ्रष्ट है मति
केश कर्षित हुई अर्जुन-प्रिया, अपमानित मेरी सखी
नारी पर घात, प्रकोप की प्रचंड गति
विनाश आवश्यक कहता पुरुष है
परिवर्तन मांग रही थी प्रकृति!
समर के लिए कटिबद्ध नहीं
मैं तो सृष्टि का प्रतिपालक हूँ
शांतिदूत बन दिया प्रस्ताव सुख का
मैं भक्तवत्सलता में बालक हूँ!
चराचर जगत मेरा प्रिय अंश
अनायास नहीं चाहा मैंने विध्वंस
देव-दानव समान सरल यह भेद नहीं
परपंच-लीला का संग्राम था
निष्क्रिय महारथियों का स्पंदन-विराम था।
धन्य हो पार्थ, तुम बने मेरे माध्यम
आवश्यक संसार को गीता का ज्ञान था!
संभव है मेरी विधियाँ तुम्हें छल लगें
अल्पधर्म-अर्धसत्य में भेद करने में तुम्हें बल लगे
निष्काम कर्म की पगडंडी कठिन है
परंतु मुझ तक पहुँचने का मार्ग वही है।
समर्पण से पिघलता ह्रदय परमात्मा का
सहज गुण है ज्ञान आत्मा का!!
(समर्पण से पिघलता ह्रदय परमात्मा का
सहज गुण है ज्ञान आत्मा का!!)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे!!! युगे !!!!!!
(सम्भवामि युगे!!! युगे !!!!!!)