RAM KATHA PART 3 Lyrics
- Genre:World Music/Folklore
- Year of Release:2023
Lyrics
काल चक्र ने घटना क्रम में
ऐसा चक्र चलाया
राम सिया के जीवन में फिर
घोर अँधेरा छाया
अवध में ऐसा
ऐसा एक दिन आया
अवध में ऐसा
ऐसा एक दिन आया
निष्कलंक सीता पे प्रजा ने
मिथ्या दोष लगाया
अवध में ऐसा
ऐसा एक दिन आया
चल दी सिया जब तोड़कर
सब स्नेह नाते मोह के
पाषाण हृदयो में न
अंगारे जगे विद्रोह के
ममतामयी माओं के
आँचल भी सिमट कर रह गए
गुरुदेव ज्ञान और नीति के
सागर भी घट कर रह गए
न रघुकुल न
रघुकुल नायक
कोई न सिया का
हुआ सहायक
मानवता को खो बैठे जब
सभ्य नगर के वासी
तब सीता को हुआ सहायक
वन का एक सन्यासी
उन ऋषि परम उदार का
वाल्मीकि शुभ नाम
सीता को आश्रय दिया
ले आये निज धाम
रघुकुल में कुलदीप जलाये
राम के दो सुत सिया ने जाएँ
श्रोतागण
जो एक राजा की पुत्री है
एक राजा की पुत्रवधु है
और एक चक्रवर्ती सम्राट की पत्नी है
वोही महारानी सीता
वनवास के दुखो में
अपने दिनों कैसे काटती है
अपने कुल के गौरव और
स्वाभिमान की रक्षा करते हुए
किसी से सहायता मांगे बिना
कैसे अपना काम वोह स्वयं करती है
स्वयं वन से लकड़ी काटती है
सवयं अपना धान काटती है
स्वयं अपनी चक्की पीसती है
और अपनी सन्तानो को
स्वाभलम्बी बनने की शिक्षा
कैसे देती है
अब उनकी करुण झानी देखिये
जनक दुलारी कुलवधू दशरथ जी की
राज रानी हो के दिन वन में बिताती है
रहती थी घेरि जिसे
दास दासिया आठोयाम
दासी बनी अपनी
उदासी को छुपाती है
धरम प्रवीण सती
परम कुलीना सब
विधि दोष हिना
जीना दुःख में सिखाती है
जगमाता हरी प्रिया लक्ष्मी स्वरूप सिया
कूटती है धान भोज स्वयं बनाती है
कठिन कुल्हाड़ी लेके लकडिया काटती है
करम लिखे को पर काट नहीं पाती है
फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था
दुःख भरी जीवन का बोझ वो उठाती है
अर्धागिनी रघुवीर की वोह धरे धीर
भरती है नीर नीर जल में नहलाती है
जिसके प्रजा के अपवादों
के कुचक्रो में
पीसती है चक्की
स्वाभिमान बचाती है
पालती है बच्चौं को
वो कर्मयोगी की भाति
स्वालम्बी सफल बनाती है
ऐसी सीता माता की परीक्षा लेती
दुःख देते
निठुर नियति को दया भी नहीं आती है
ओ
उस दुखिया के राज दुलारे
हम ही सुत श्री राम तिहारे
सीता मा की आँख के तारे
लव कुश है पितु नाम हमारे
हे पितु भाग्य हमारे जागे
राम कथा कहि राम के आगे
ये थी राम कथा अब!!
जय बोलो
श्री राम की