Guntraya Vibhag ft. Apoorv Sharan Lyrics
- Genre:Hip Hop & Rap
- Year of Release:2023
Lyrics
Chapter 14
Intro:-
कहते कृष्ण क्या ध्यान से सुन
अर्जुन प्रकृति के तीन गुण।।
Verse:-
कहते श्री कृष्ण अर्जुन समस्त ज्ञानों में भी
सर्वश्रेष्ठ इस परमज्ञान को फिर से बताता हूं
जिसे जानकर बड़े बड़े ऋषि मुनि सिद्धि को प्राप्त हो गए,
वो योग मैं फिर से तुझको सुनाता हूं।
हे अर्जुन इस ज्ञान में स्थिर होकर मनुष्य
मेरे जैसे स्वभाव को ही प्राप्त हो जाता है
वो ना तो सृष्टि के प्रारंभ में होता उत्पन्न
और ना ही प्रलय में फिर से व्याकुल हो पाता है।।
हे अर्जुन, आठ तत्वों जल,अग्नि,वायु,आकाश,
पृथ्वी,मन,बुद्धि,अहंकार वाली जड़ प्रकृति ही
समस्त वस्तुओं को उत्पन्न करने वाली योनि
यानि की माता है उनकी जो देह धारण करते
और हर एक देह में स्थापित आत्मारूपी बीज करने वाला,
मैं पिता जो सृष्टि का संचालन करते।।
गुणत्रय विभाग योग प्रकृति के तीन गुण
पहला सतो, दूजा रजो व तीन तमो गुण
तीनों ही बंधन हैं,जिनसे बंध जाती आत्मा
लेकिन सबसे ज्यादा हानि जो देता वो है तमो गुण।
तीनों ही गुण बंधन में रखते अर्जुन बांध के
बताता हूं विस्तार से, तू सुनना बाते ध्यान से।।
Mid hook:-
कहते कृष्ण क्या ध्यान से सुन
अर्जुन प्रकृति के तीन गुण
बंधन में बंध जाती आत्मा
खुद ब खुद ही इन गुण को चुन।।
कहते कृष्ण क्या ध्यान से सुन
अर्जुन प्रकृति के तीन गुण
कितना और कैसा प्रभाव है
गुण का किस वो चल आगे सुन।।
Verse:-
सतो गुण से अर्जुन सुन, उत्पन्न होता ज्ञान
रजो गुण से लोभ व तमो गुण से अज्ञान
सतो गुण कराता पापकर्मों से है मुक्त,
लोभ देता रजो गुण, तमो गुण की आलस पहचान।
ये तीनों गुण ही बाँधे रखते हैं अर्जुन मनुष्य को
जो जिस गुण में बंध जाता वो बाकी दो को दबाता,
और जिस पल नौ द्वारों में उत्पन्न हो ज्ञान प्रकाश
उस पल सतो गुण, विशेष बुद्धि को प्राप्त हो जाता।।
तीनों गुण बंधन हैं, तीनों के अपने अपने फल हैं
मृत्यु पश्चात वैसी योनि, जैसा कर्म पटल है
सतो गुण स्वर्ग मिलें, रजो गुण मृत्यु लोक में वापस
तमो गुण की योनि पशु पक्षी, यही इनके फल हैं।
पर अर्जुन संभव है इन गुणों के भी बंधन से बचना
स्वयं पर ध्यान लगा पहचान इन्हें संभव है बचना
अर्जुन पूछे सवाल इन तीन गुणों से मुक्त जो होता,
हे माधव, क्या उनके लक्षण जो जानते इनसे बचना।।
माधव बोले, जो सुख दुःख प्रेम घृणा सब पर समान है
है जो समभाव, फल से जो मुक्त, कर्म जिसका प्रधान है
ईश्वर में लीन भक्त, जो विचलित हुए बिना है रहता
तीनों गुण से छूटे, उसे प्राप्त होता परमात्मा ज्ञान है।।
Outro:-
अंतिम श्लोक में श्री कृष्ण अपना रूप बताते हुए कहते हैं कि मैं ही अविनाशी ब्रहमपद का अमृत स्वरूप,शाश्वत स्वरूप, धर्म स्वरूप व परम आनंद स्वरूप का एकमात्र आश्रय हूं।।
जय श्री कृष्णा 🙏❤️