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  • Genre:Hip Hop & Rap
  • Year of Release:2023

Lyrics

तलवार,धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र मे खड़े हुये

रक्त पिपासू महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुये

कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे

एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे

महासमर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी

लेकिन पार्थ के रथ को तो khud केशव हाँक रहे थे जी

रणभूमि के सभी नजारे देखन मे कुछ खास लगे

माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हे उदास लगे

कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल मे तभी सजा डाला

shankh उठा shri कृष्ण ने मुख से fooka aur बजा डाला

हुआ शंखनाद जैसे ही vaise सबका गर्जन शुरु हुआ

रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ

कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच zara

गाण्डिव पर रख बाणो को प्रत्यंचा को खींच zara

आज दिखा दे रणभुमि मे योद्धा की तासीर यहाँ

इस धरती पर कोई नही hai, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ


सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया

एक धनुर्धारी की विद्या मानो चुहा कुतर गया

बोले पार्थ सुनो कान्हा - जितने सम्मुख है ये खड़े हुये

Inhi sabhi से सीख-सीख कर सारे भाई बड़े हुये है

इधर खड़े hain भिष्म pitamah मुझको गोद खिलाया है

गुरु द्रोण ने धनुष-बाण का सारा ग्यान सिखाया है

सभी भाई पर प्यार लुटाया कुंती मात हमारी ने

कमी कोई नही छोड़ी kabhi थी, us माता गांधारी ने

ये जितने गुरुजन खड़े हुये है सभी पूजने लायक है

माना दुर्योधन दुसासन थोड़े से नालायक है

मैं अपराध क्षमा करता हूँ, बेशक हम ही छोटे है

ये जैसे भी है आखिर माधव, सब ताऊ के बेटे है

Itne se भू भाग की खातिर हिंसक नही बनुंगा मैं

स्वर्ण ताककर अपने कुल का विध्वंसक नही बनुंगा मैं

खून सने हाथो को होता, राज-भोग अधिकार नही

sabko मार ke गद्दी मिले तो सिंहासन स्वीकार नही

रथ पर बैठ गया अर्जुन, मुँह माधव से tha मोड़ दिया

आँखो मे आँसू भरकर गाण्डिव हाथ से छोड़ दिया

गाण्डिव जब छूटा tab माधव भी कुछ अकुलाए थे

शिष्य पार्थ पर गर्व हुआ, और मन ही मन हर्षाए थे

मन में सोच लिया अर्जुन की बुद्धि ना सटने दूंगा

समर भूमि में पार्थ को कमजोर नहीं पड़ने दूंगा

धर्म बचाने की खातिर एक नव अभियान शुरु हुआ

उसके बाद जगत गुरु का गीता ज्ञान शुरु हुआ

एक नजर में, रणभूमि के कण-कण डोल गए माधव

टक-टकी बांध के देखा अर्जुन एकदम बोल गए माधव

हे! पार्थ मुझे पहले बतलाते मै संवाद नहीं करता

तुम सारे भाईयो की खातिर कोई विवाद नहीं करता

पांचाली के तन पर लिपटी साड़ी खींच रहे थे वो

दोषी वो भी उतने ही है जबड़ा भींच रहे थे जो

घर की इज्जत तड़प रही कोई दो टूक नहीं बोले


पौत्र बहू को नग्न देखकर गंगा पुत्र नहीं खौले

तुम कायर बन कर बैठे हो ये पार्थ बडी बेशर्मी है

संबंध उन्ही से निभा रहे जो लोग यहाँ अधर्मी है

धर्म के ऊपर यहाँ आज भारी संकट है खड़ा हुआ

और तेरा गांडीव पार्थ, kyu रथ के कोने में पड़ा हुआ

धर्म पे संकट के बादल तुम छाने कैसे देते हो

कायरता के भाव को मन में आने कैसे देते हो

हे पांडू के पुत्र ! धर्म का कैसा कर्ज उतारा है

शोले होने थे ! आँखो में, पर बहती जल धारा है

धर्म-अधर्म की गहराई में खुद को नाप रहा अर्जुन

अश्रूधार फिर तेज हुई और थर-थर काँप रहा अर्जुन

हे केशव ! ये रक्त स्वयं का पीना नहीं सरल होगा

और विजय यदि हुए to bhi yaha जीना नहीं सरल होगा

हे माधव ! मुझे बतलाओ कुल नाशक कैसे बन जाऊं

रख सिंहासन लाशों पर मै, शासक कैसे बन जाऊं

कैसे उठेंगे कर उन पर जो कर पर अधर लगाते है

करने को जिनका स्वागत, ये कर भी khud जुड़ जाते है

इन्ही करो ने बाल्य काल में सबके पैर दबाये है

इन्ही करो को पकड़ कर मै, पितामह मुस्काये है

नोंक जो apne बाणो की fir इनकी ओर करूंगा मै

केशव मुझको मृत्यु दे दो उससे पूर्व मरूंगा मै

बाद युद्ध के मुझे ना कुछ भी पास दिखाई देता है

व ! इस रणभूमि में, बस नाश दिखाई देता है

बात बहुत भावुक थी par जगत गुरु मुस्काते थे

गीता द्वारा चक्रधारी बरसाते थे

जन्म-मरण की योद्धा यहाँ पे बिल्कुल चाह नहीं करते

क्या होगा अंजाम युद्ध का ये परवाह नहीं करते

पार्थ ! यहाँ कुछ मत सोचो बस कर्म में ध्यान लगाओ तुम

बाद युद्ध के क्या होगा ये मत अनुमान लगाओ तुम

इस दुनिया के रक्तपात में, कोई तो अहसास नहीं

निज जीवन का करे फैसला, नर के बस की ye बात नहीं

तुम ना जीवन देने वाले, नहीं मारने वाले हो

ना जीत तुम्हारे हाथों में, तुम नहीं हारने वाले हो

ये जीवन दीपक की भांति, यूं ही चलता रहता है

पवन वेग से बुझ जाता है, वर्ना जलता रहता है

मानव वश में शेष नहीं कुछ, फिर भी मानव डरता है

वह मरकर भी अमर हुआ, जो धर्म की खातिर मरता है

ना सत्ता सुख से होता है, ना सम्मानों से होता है

जीवन का सार सफल बस बलिदानों से होता है

देहदान योद्धा ही करते है, ना कोई दूजा जाता है

रणभूमि में वीर मरे तो शव भी पूजा जाता है

सेना युद्ध में जैसे अपने खोटे शस्त्र बदलती है

दिव्य आत्मा मानव देह में वैसे वस्त्र बदलती है


हे केशव ! कुछ समझ गया, पर कुछ-कुछ असमंजस में हूँ

इतना समझ गया कि मैं न स्वयं ही खुद के वश में हूँ

ये मान और सम्मान बताओ जीवन के अपमान बताओ

जीवन मृत्यु क्या है माधव? रण में जीवन दान बताओ

काम, क्रोध की बात कही मुझको उत्तम काम बताओ

अरे! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ

इतना सुनते ही माधव का धीरज पूरा डोल गया

तीन लोक का स्वामी फिर बेहद गुस्से में बोल गया

सारे सृष्टि को भगवान बेहद गुस्से में लाल दिखे

देवलोक के देव डरे सबको माधव में काल दिखे

अरे ! कान खोल कर सुनो पार्थ मै ही त्रेता का राम हूँ

कृष्ण मुझे सब कहते है, मै द्वापर का घनश्याम हूँ

रूप कभी नारी का धरकर मै ही केश बदलता हूँ

धर्म बचाने की खातिर, मै angit वेष बदलता हूँ

विष्णु जी का दशम रूप मैं परशुराम मतवाला हूँ

नाग कालिया के फन पे मैं मर्दन करने वाला हूँ

बांकासुर और महिषासुर को मैने जिंदा गाड़ दिया

नरसिंह बन कर धर्म की खातिर हिरण्यकश्यप फाड़ दिया

रथ नहीं तनिक भी चलता है, बस मैं ही आगे बढ़ता हूँ

धनुष हाथ में तेरे, पर रणभूमि में मैं लड़ता हूँ

इतना कहकर मौन हुए, फिर खुद सकुचाये केशव

पलक झपकते ही अपने दिव्य रूप में आये केशव

दिव्य रूप का तेज अनोखा सबसे अलग दमकता था

कई लाख सूरज जितना चेहरे पर तेज चमकता था

इतने ऊँचे थे भगवान सर में अम्बर लगता था

और हजारों भुजा देख अर्जुन को डर लगता था

माँ गंगा का पावन जल उनके कदमों को चूम रहा था

और तर्जनी ऊँगली में भी चक्र सुदर्शन घूम रहा था

नदियों की कल-कल सागर का शोर सुनाई देता था

कृष्ण के अंदर पूरा ब्रह्मांड दिखाई देता था

जैसे ही मेरे माधव का कद थोड़ा-सा बढ़ा हुआ

सहमा-सहमा सा था अर्जुन, एक-दम रथ से खड़ा हुआ

गीता के इस ज्ञान से सीधे ह्रदय में ऐसे प्रहार हुआ

मृत्यु के आलिंगन हेतु फिर अर्जुन तैयार हुआ

मैं धर्म भुजा का वाहक हूँ, कोई मुझको मार नहीं सकता

जिसके रथ पर भगवान हो वो युद्ध में हार नहीं सकता

जितने यहाँ अधर्मी है चुन-चुनकर उन्हें सजा दूंगा

इतना रक्त बहाऊंगा धरती की प्यास बुझा दूंगा

अर्जुन की आँखों में धर्म का राज दिखाई देता था

पार्थ में अब केशव को बस यमराज दिखाई देता था

जिधर चले फिर बाण पार्थ के सब पीछे हट जाते थे

रणभूमि के कोने-कोने लाशों से पट जाते थे

कुरुक्षेत्र की भूमि पे तब नाच नचाया अर्जुन ने

सारी धरती लाल हुई कोहराम मचाया अर्जुन ने

बड़े-बड़े योद्धाओं को भी नानी याद दिलाई थी

मृत्यु का वो तांडव था जो मृत्यु भी घबराई थी

ऐसा लगता था सबको मृत्यु से प्यार हुआ है जी

धर्म का ऐसा युद्ध जगत में पहली बार हुआ है जी!

धर्मराज के शीश के ऊपर राजमुकुट की छाया थी

पर दुनिया यह जानती थी ये बस केशव की माया थी

धर्म की रक्षा वाले, दाता दया निधान की जय!

हाथ उठा कर सारे बोलो, चक्रधारी भगवान की जय!

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